Thursday, July 23, 2020

राजद और कन्हैया कुमार के बिच छत्तीस का आंकड़ा

राजद कन्हैया कुमार का समर्थन बहुत कारणों से नहीं करती है और मजुहे नहीं लगता है कि निकट भविष्य में राजद कभी कन्हैया कुमार का समर्थन करेगी।
  • हम सभी जानते है कि राजद एक परिवार पर आधारित पार्टी है।  इसमें केवल परिवार को प्रथमिकता मिलती है और अब तो लालू यादव के पुराने सहियोगी जैसे रघुवंश प्रसाद सिंह , अब्दुल बारी सिद्दीकी इत्यादि को भी किनारे कर दिया गया है। वैसे भी परिवार में ही बहुत अंतरकलह है और बहुत से खेमे है इसलिए शायद ही राजद किसी और को आगे बढ़ाना चाहेगी।
  • कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव दोनों अपने उम्र के तीसरे दशक में है और भारत के राजनीती के हिसाब से वो बहुत युवा है। दोनों के पास राजनीती के लिए बहुत समय है। अगर राजद ने कन्हैया कुमार का समर्थन किया तो वो शायद तेजस्वी यादव  से आगे निकल जायेंगे और फिर दशकों तक शायद तेजस्वी यादव को मुश्किल होगी। कन्हैया कुमार सोशल मीडिया और वामपंथियों के बीच मोदी विरोधी लोगों के चाहते है और उपर से वो अधिक पढ़े लिखे। अगर उनको लालू यादव ने बिहार में पैर ज़माने दिया तो वो तेजस्वी यादव  के मुख्यमंत्री के राह में रोड़ा बन जायेंगे।  इसलिए राजद ने पिछले साल बेगूसराय से कन्हैया कुमार के सामने अपना एक शक्तिशाली उम्मीदवार उतारा था।  
  • राजद बिहार में सवर्ण विरोधी राजनीती करती रही है हालाँकि कई सवर्ण नेता (अधिकतर राजपूत) जैसे रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह , प्रभुनाथ सिंह इत्यादि लालू यादव के साथ खड़े रहे है। पिछले साल संसद में राजद के एक ब्राह्मण नेता मनोज झा ने गरीब सवर्ण आरक्षण का कड़ा विरोध किया था। अब कन्हैया कुमार तो भूमिहार है और राजद कैसे एक भूमिहार को अपने प्रथम परिवार से आगे कर सकती है। इससे शायद राजद के परंपरागत मतदाता नाराज़ हो सकते है।
  • लालू यादव तो जमीन से जुड़े नेता रहे है और उन्होंने लम्बा राजनैतिक संघर्ष किया है और शायद उनको सोशल मीडिया पर रहने वाले नेता (जैसे कन्हैया कुमार) बहुत पसंद नहीं होंगे।  वीएस उनके सुपुत्र भी सड़क से अधिक ट्विटर पर ही दिखते है।
  • कन्हैया कुमार की एक मोदी विरोधी छवि बिहार के मुसलमानों के बीच बन रही है।  ऐसा मन जाता हैं कि मुस्लिम बहुतायत पूर्वांचल (बिहार का कटिहार और पूर्णिया प्रमंडल) में नागरिकता बिल के खिलाफ सभाएं बहुत सफल रही थी।  शरजील इमाम (जो अभी जेल में है ) ने भी उसी भाषण में जिसमें उसने असम को शेष भारत से काटने की बात की थी में कहा था कि कन्हैया की रैली में पूर्णिया में 5 लाख लोग आये थे और वो आराम से असम को शेष भारत से काट सकते है।  राजद हमेशा माय (मुस्लिम + यादव) समीकरण पर आधारित पार्टी रही है और अगर इसमें से मुस्लिम राजद से छिटक जाये तो राजद की हालत बहुत ख़राब हो सकती है।
  • राजद और वामपंथियों का लगभग एक ही वोट बैंक है।  वामपंथ को बिहार में भाजपा ने नहीं बल्कि लालू यादव ने ख़त्म किया था। अगर वामपंथ को बिहार में पैर पसारने का मुका मिलेगा तो यह राजद के वोट बैंक पर अधिक असर डालेगा।


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