Tuesday, July 21, 2020

अशोक गेहलोत सरकार गिराने में असफल होने के बाद सचिन पायलट के राजनैतिक विकल्प


ऐसा लगता है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन पायलट को अपमानित और दरकिनार करने में सफल रहे हैं। अब सचिन पायलट एक चौराहे पर हैं जहां उन्हें अपने जीवन का सबसे कठिन फैसला लेना है। आने वाले कुछ दिन यह निर्णय करेंगे कि सचिन पायलट एक राजनेता के रूप में भविष्य में सफल होंगे या नहीं।

राजस्थान के कई जाने माने पत्रकारों का कहना है कि राजस्थान कांग्रेस में 12 या 18 महीने का फार्मूला था। ऐसा माना जाता है कि सचिन पायलट को कांग्रेस आलाकमान (शायद गाँधी परिवार) ने दिसंबर 2018 में कहा था कि उन्हें अगले 12 से 18 महीनों में मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा। यह मुख्य कारण हो सकता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के विपरीत पायलट ने उप मुख्यमंत्री पद को स्वीकार किया था। कई रिपोर्टों के अनुसार मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से अपने उप मुख्यमंत्री की उपेक्षा करते थे। कई बार किसी मीटिंग या सभा में दोनों एक दूसरे के प्रति नाराजगी जाहिर करते थे। दोनों शायद ही एक दूसरे से खुल कर बात करते थे और मुख्यमंत्री की पूरी कोशिश रहती थी कि उप मुख्यमंत्री के काम में अड़ंगा डाला जाये। हो सकता है कि यह अशोक गहलोत की रणनीति हो कि  सचिन पायलट को इस कदर परेशान किया जाये  कि उनके पास विद्रोह करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचे। अशोक गहलोत ने पिछले 18 -19 महीनों का उपयोग सचिन पायलट को कमजोर करने के लिए किया।

अशोक गहलोत अभी 69 वर्ष के हैं और 2023 के विधानसभा चुनाव के समय वह 73 वर्ष के हो जाएंगे। यह काफी स्वाभाविक है कि सचिन पायलट 2023 के चुनाव में में कांग्रेस के गहलोत चेहरे बन जायेंगे। लेकिन 2023 में गहलोत खुद को गहलोतउम्मीदवार के रूप में देखना पसंद करेंगे और उन्हें अपने लिए विरासत बनानी होगी और अपने बेटे को भी आगे बढ़ाना है और एक बार सचिन पायलट नेता बन गए तो वह गहलोत और उनके बेटे को दरकिनार कर सकते हैं। और कांग्रेस में तो सबसे अधिक वंशवाद का बोलबाला है (यहां तक ​​कि सचिन पायलट भी खुद राजीनीति में अपने पिता की विरासत संभाल रहे है) इसलिए इन दिनों भारतीय राजनीति में यही होता है कि नेता अपने पुत्र या पुत्री के भविष्य के लिए किसी भी हद तक जा सकते है।

सचिन पायलट को लगता था कि उनके पास 30 से अधिक विधायकों का समर्थन है। लेकिन वह यह भूल गए कि अशोक गहलोत एक माबहुत ही चतुर रणनीतिकार हैं और पायलट को उनसे सावधान रहना चाहिए था। अंत में आज सचिन के पास सिर्फ 18 विधायक हैं। कई गुर्जर विधायक और सचिन पायलट के करीबी लोग अब गहलोत खेमे में हैं। हो सकता है कि ये लोग सचिन कैंप में गहलोत के जासूस हो इसलिए  गहलोत कैंप हमेशा प्लानिंग में एक कदम आगे था। ऊपर से राजस्थान भाजपा में नयी और पुरानी पीढ़ी का युद्ध चल रहा है। मोदी और शाह वसुंधरा राजे की जगह नए नेता लाना चाहते है। जब तक पायलट के पास नंबर नहीं होगा तब तक बीजेपी सचिन पायलट की खुलकर मदद नहीं करेगी। ऐसा माना जाता है कि गांधी परिवार पायलट के संपर्क में था, लेकिन अशोक गहलोत जानबूझकर सचिन पायलट को रोजाना  अपमानित कर रहे थे। कल उन्होंने पायलट को निकम्मा, नकरा (बेकार) करार दिया। साथ ही सचिन खेमे के 18 विधायकों को अयोग्य ठहराने को लेकर अदालती लड़ाई चल रही है।

10 दिन पहले, सचिन पायलट राज्य कांग्रेस प्रमुख और उप मुख्यमंत्री थे। आज उनके पास कुछ भी नहीं है और उन्हें कई कांग्रेस नेताओं द्वारा विद्रोही के रूप में देखते है। भूपेश बघेल जैसे कुछ कांग्रेस नेताओं ने इस विवाद में सचिन के बहनोई उमर अब्दुल्ला को भी घसीट लिया है अब सचिन के पास सैद्धांतिक रूप से तीन विकल्प हैं - कांग्रेस में बने रहें, भाजपा में शामिल हों या एक नई पार्टी बनाएं। सचिन बीजेपी में शामिल नहीं हो सकते क्योंकि कम संख्या के साथ बीजेपी उन्हें बहुत कुछ नहीं दे सकती है और बीजेपी राज्य में नए नेतृत्व के रूप में केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को आगे बढ़ा रही है। बीजेपी केंद्र में सचिन पायलट की बड़ी भूमिका दे सकती है और वह बीजेपी के लिए गुर्जर वोट ला सकती है लेकिन सचिन पायलट शायद इतने में खुश नहीं होंगे। दूसरा विकल्प है कि वह इस अपमान के बाद भी कांग्रेस में बने रह सकते हैं लेकिन उनकी शक्ति कम हो जाएगी। यह अभी भी संभव है यदि गांधी परिवार खुले तौर पर प्रतिबद्धता देता है कि वह 2023 और 2028 के चुनाव के लिए पायलट मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे  (जैसा कि सत्तारूढ़ पार्टी आमतौर पर राजस्थान में हारती है इसलिए 2028 में सचिन पायलट के लिए अच्छा मौका होगा) तीसरा विकल्प तीसरा मोर्चा बनाना है। यह बहुत जोखिम भरा विकल्प है, लेकिन अगर वो सफल हुए तो उनको बहुत फायदा होगा एक नई पार्टी के साथ, वह कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और कांग्रेस को दिखा सकते हैं कि वे उसके बिना चुनाव नहीं जीत सकते। और फिर वह कांग्रेस में अधिक शक्ति के साथ लौट सकते हैं और 2028 में सीएम बन सकते हैं।हमें इंतजार करना होगा और सिचिन पायलट की चाल को करीब से देखना होगा। वैसे राजस्थान में हाल के कुछ दशकों में तीसरा मोर्चा सफल नहीं हुआ है लेकिन सचिन पायलट अभी युवा है और उन्मैं जुझारूपन भी है।

अब समय ही बताएगा कि सचिन पायलट क्या फैसला लेते है।

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