Wednesday, August 12, 2020

सऊदी - पाकिस्तान संबंधों में अभूतपूर्व तनाव

हाल के सप्ताहों में हमने सऊदी - पाकिस्तान संबंधों में कुछ अभूतपूर्व तनाव देखा हैं।

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने सऊदी अरब को एक टीवी साक्षात्कार में खुली धमकी दी थी और सऊदी अरब ने हाल ही में पाकिस्तान को एक बिलियन अमरीकी डालर (3.2 बिलियन ऋण में से जो उन्होंने पिछले साल पाकिस्तान को दिया था) वापस करने के लिए कहा। टीवी पर पाकिस्तान ने धमकी दी थी कि अगर ओआईसी (सऊदी नेतृत्व वाला इस्लामिक संगठन) कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ प्रस्तुत करने में विफल रहता है तो वह ओआईसी से अलग हो जायेगा। ऐसे संकेत हैं कि सऊदी अरब पाकिस्तान को तेल की बिक्री के लिए देर से भुगतान विकल्प को आगे नहीं बढ़येगा है। ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान ने चीन से पैसा उधार लेकर सऊदी अरब को 1 बिलियन अमरीकी डॉलर लौटाए हैं। कुछ समाचारों के अनुसार सउदी ने अब अतिरिक्त 1 बिलियन अमरीकी डालर की मांग की है। हमने पिछले कुछ वर्षों में देखा है कि पाकिस्तान सऊदी अरब के प्रतिद्वंद्वियों तुर्की और ईरान के करीब जा रहा है।

 

मुझे लगता है कि यह पश्चिम एशिया में नए भू-राजनीति समीकरण का परिणाम है। सऊदी अरब अमेरिका के करीब हैं और अब वे इस्रायल के करीब भी हो हैं। अमेरिका और इजरायल के साथ अपने अच्छे संबंधों के कारण, सऊदी-भारत संबंध बहुत अच्छा हो गया है। यह अलग बात है कि मोदी सरकार भारत सऊदी अरब के बढ़ती मित्रता का क्रेडिट ले लेती है लेकिन यह इस्रायल के बिना नहीं हो पता।  दूसरी तरफ पाकिस्तान चीनी कैंप में मजबूती से खड़ा है। चीन ईरान के साथ 400 बिलियन अमरीकी डालर के बड़े सौदे पर हस्ताक्षर करने जा रहा है। इस प्रकार पाकिस्तान अनिच्छा से खुद को ईरान के साथ चीनी शिविर में पाता है। सऊदी अरब यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि उनके करीबी सहयोगी पाकिस्तान का ईरान के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार हो। पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान-तुर्की संबंधों में मजबूती आई है और एर्दोगन के नए ओटोमन साम्राज्य केसपने को कभी रियाद में पसंद नहीं किया जाएगा। सऊदी अरब और तुर्की के सम्बद्ध सदियों के ख़राब है। 1818 में इस्ताम्बुल में सऊदी राजा अब्दुल्ला बिन सऊद के सिर कलम कर दिया गया था और अरब दुनिया के कई हिस्सों पर तुर्की का प्रथम विश्वयुद्द तक कब्ज़ा था।

सऊदी नेतृत्व वाले सुन्नी ब्लॉक के साथ भी चीन के अच्छे संबंध हैं लेकिन चीन जरूरत पड़ने पर ईरान और पाकिस्तान को अधिक महत्व देगा। उसी तरह, सऊदी अरब किसी भी दिन चीन पर अमेरिका को तरजीह देगा। एक और पहलू यह है कि पाकिस्तान को लगता है कि वे मुस्लिम उम्मा (दुनिया) के नेता हैं। उन्हें लगता है कि अंतरराष्ट्रीय संबंध द्विआधारी हैं। उनकी उम्मीद है कि पाकिस्तान के सभी दोस्त भारत के साथ अपने संबंधों को ख़राब करें। यहां तक ​​कि चीन के पास भारत के साथ भारी व्यापार है और पिछले साल चीन ने भारत के साथ व्यापार से लगभग 60 बिलियन अमरीकी डालर (पाकिस्तान ने चीन के कुल निवेश के बराबर) कमाया था। सऊदी अरब भारत के साथ अपने संबंधों को कैसे ख़राब कर सकता है? भारत दुनिया में तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है और आज के तेल बाजार में खरीददारों का बोलबाला है। भारत सऊदी निवेश के लिए उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है (जैसे सऊदी सरकार मुकेश अम्बानी के तेल कंपनी में निवेश कर रहे है ) और अधिक भारतीय (पाकिस्तानियों की तुलना में) सऊदी अरब में रहते हैं और काम करते हैं। पाकिस्तानी समाचार चैनलों और सोशल मीडिया ने सऊदी की आलोचना और तुर्की का समर्थन करना शुरू कर दिया है। कल शाम #TurkeyIsNotAlone पाकिस्तानी यूजर्स के ट्वीट के कारण इंटरनेट पर ट्रेंड कर रहा था। इस तरह की सार्वजनिक नाराजगी सऊदी अरब, यूएई आदि को कभी पसंद नहीं होगा। कई बार पाकिस्तानी जनता और नेता इस्लाम के मुद्दे पर भावनाओं में बह जाते हैं और अपने राष्ट्रीय हितों को भूल जाते हैं। उनको लगता है कि इस्लाम के नाम पर इस्लामिक दुनिया चलती है और सारी इस्लामी दुनिया एक है। पाकिस्तान को लगता है कि सारे मुस्लिम मुल्क भारत के खिलाफ खड़े हो। लेकिन वहीं पाकिस्तान चीन में मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार पर चुप रहता है। 

मुझे लगता है कि पाकिस्तान को चीन से कुछ आश्वासन मिला होगा कि वे पाकिस्तान का हर हाल में साथ देंगे कर देंगे और पाकिस्तान अमेरिकी सहयोगियों (जैसे सऊदी अरब,यूएई ) को निशाना बना सकता है। पाकिस्तान के पास बिना चीनी समर्थन के सउदी को चुनौती देने की हिम्मत नहीं है। पश्चिम और दक्षिण एशिया में नए शीत युद्ध शुरू होने वाला है। पाकिस्तान, ईरान, तुर्की, रूस चीनी शिविर का हिस्सा बन सकते हैं और भारत, इज़राइल, सऊदी अरब, यूएई आदि अमेरिकी शिविर का हिस्सा बन सकते हैं।

1 comment:

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