सऊदी अरब पाकिस्तान को बहुत अच्छी तरह से जानता है और अभी भी पाकिस्तान में इसका काफी प्रभाव है। वे स्पष्ट रूप से जानते हैं कि पाकिस्तान में असली शक्ति केंद्र पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का कार्यालय नहीं बल्कि जीएचक्यू, रावलपिंडी (पाकिस्तानी सेना मुख्यालय) है।
पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान को विपक्षी दलों द्वारा "सिलेक्टेड प्रधानमंत्री " कहा जाता है। उनका आरोप है कि इमरान खान ने पाकिस्तानी सेना की सक्रिय भूमिका के कारण चुनाव जीता था और वे जनता के नहीं बल्कि सेना के प्रधानमंत्री है। हम सभी जानते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सेना ने कैसे प्रधानमंत्री के पद से हटाया था। पाकिस्तान में यह सर्वविदित तथ्य है कि सेना पाकिस्तान में वास्तविक शक्ति केंद्र है। जब भारत ,अमेरिका, ब्रिटेन , जापान इत्यादि देशों के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति विदेशी दौरे पर जाते है तो उनके साथ सेना प्रमुख नहीं जाते है। लेकिन जब इमरान खान अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे देश जाते है तो उनके साथ सेना प्रमुख भी जाते है। मुझे नहीं लगता कि किसी वास्तविक लोकतंत्र में ऐसी चीजें होती हैं? यह दिखता है कि दुनिया यह जानती है कि बिना सेना के पाकिस्तान में एक पत्ता भी नहीं हिलता है।
लेकिन ऐसा लगता है कि सउदी अरब दुनिया के अन्य देशों एक कदम आगे निकल गए हैं और वे सीधे पाक सेना से बात कर रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि पाक सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने पिछले साल सऊदी अरब से 6.2 बिलियन अमरीकी डालर का पैकेज हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कुछ हफ़्ते पहले जब सऊदी अरब 1 बिलियन डॉलर वापस चाहता था तब उन्होंने सेना के माध्यम से सरकार को संदेश दिया था। अब पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी द्वारा सऊदी को खुली धमकी के बाद सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच एक तनाव साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा है। ऐसा लगता है कि सउदी अरब पाकिस्तान सरकार से खुश नहीं हैं। यही कारण है कि सऊदी राजदूत ने सरकार को दरकिनार कर सेना प्रमुख और अन्य राजनेताओं के साथ मुलाकात की है। क्या कोई जनता द्वारा चुनी गयी सरकार एक विदेशी राजदूत और सेना प्रमुख के बीच ऐसी मुलाकातों को सहन करेंगे ? मुझे ऐसा नहीं लगता है कि कोई भी लोकतान्त्रिक सरकार ऐसे मुलाकातों को सहन करेगी। लेकिन इमरान खान की अपनी सीमाएं हैं और वह सेना के समर्थन से ही सत्ता में है। इसलिए इमरान खान वह खुलकर सेना के खिलाफ नहीं जा सकते।
अब पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा सऊदी-पाकिस्तान संबंधों को सामान्य बनाने के लिए सऊदी अरब का दौरा करेंगे। सऊदी अरब ने इमरान खान की जगह सेना प्रमुख को बातचीत के लिए बुला है। भले ही सऊदी अरब का पाकिस्तानी सेना के साथ ऐतिहासिक संबंध रहे है, लेकिन यह उन्हें नागरिक सरकार को किनारे करने का लाइसेंस नहीं देता है। सऊदी अरब ने इमरान खान सरकार को उनकी सही जगह दिखाया है। यह इमरान खान सरकार के लिए एक चेतवानी है कि अगर उनके मंत्री सऊदी अरब को ऐसे ही धमकी देते रहेंगे तो उनके लिए अच्छा नहीं होगा। यह एक और प्रमाण है कि जीएचक्यू, रावलपिंडी में कई नीतियां (मुख्य रूप से विदेश नीति) तय की जाती हैं।
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