Tuesday, September 1, 2020

वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में भारतीय जीडीपी (-23.9%) में रिकॉर्ड कमी

कोरोनोवायरस के कारण दुनिया को बहुत बड़ी मंदी कासामना करना पड़ रहा है। ऐसी आशंकाएं हैं कि यह मंदी 1929 की मंदी से भी बदतर हो सकती है। शायद पिछले कुछ सौ सालों में दुनिया ने ऐसी मंदी नहीं देखा है।

कोरोनावायरस अभी भी खतरनाक रूप से दुनिया को प्रभावित कर रहा है और वायरस के टीके अभी भी कुछ महीने दूर हैं। और भले ही इस साल तक टीके मिल भी जाये तो बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन एक बड़ा मुद्दा होगा। इसलिए, हमें जल्द ही कोरोना से किसी भी राहत की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं का पिछली तिमाही का प्रदर्शन बहुत ख़राब रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था में 23.9% की गिरावट, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 32.9% की कमी, ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में 20.4% की कमी, जर्मन अर्थव्यवस्था में 9.7% की गिरावट, फ्रेंच अर्थव्यवस्था में 14% की गिरावट, इतालवी अर्थव्यवस्था में 12.4% की गिरावट, जापानी अर्थव्यवस्था में गिरावट 7.2% हुई है इसलिए हम कह सकते है कि यह एक इसकी वैश्विक घटना और यह स्थानीय नहीं है। वैसे जहाँ कोरोना का मार जितना धिक् हुआ है वहां की अर्थव्यवस्था अधिक प्रभावित हुआ है जिसे - अमेरिका , भारत , ब्रिटैन इत्यादि। 

लेकिन भारत का मामला थोड़ा अलग है क्योंकि कोरोना संकट से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था सबहुत अच्छी हालत में नहीं थी। एनपीए (बैंकों के डूबे हुए बड़े लोन) के भारी संकट ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है और मोदी सरकार और आरबीआई ने भी इस मुद्दे पर देर से काम करना शुरू किया। उर्जित पटेल आरबीआई गवर्नर बाने के बाद आरबीआई ने इसपर सही में काम करना शुरू किया (यह माना जाता है कि उनके पूर्ववर्ती गवर्नर वास्तव में इस मुद्दे को बहुत ध्यान नहीं दिया ) एक और मुद्दा यह था कि भारत में पहला और दूसरा लॉकडाउन बहुत गंभीर था और भारत लगभग ठहर गया था। सब कुछ बंद था लेकिन फिर भी लोगों और सरकार ने इसको गंभीरता को नहीं समझा और आज भी कोरोना बढ़ ही रहा है।  अमेरिका और यूरोप में भी तालाबंदी हुई थी लेकिन यह भारत की तरह सख्त नहीं था। इन दिनों भी भारत में नए मामलों का दैनिक औसत लगभग 80,000 है और भारत में अभी भी अभी भी कुछ प्रकार के लॉकडाउन चल रहे हैं और हमारे स्कूल और कॉलेज अभी भी बंद हैं। भारत की जीवन रेखा - भारतीय रेल अभी भी लगभग बंद है। अंतर्राष्ट्रीय उड़ान बंद है और आज भी बहुत पाबन्दी है। 

आइए अप्रैल - जून 2020 की तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के प्रदर्शन को देखें। विनिर्माण, निर्माण और व्यापार क्षेत्र क्रमशः 39.3%, 50.3%, 47% पर बड़े पैमाने पर संकुचन हुआ हैं। वित्तीय क्षेत्र में 5.3% का संकुचन हुआ और एकमात्र उज्ज्वल किरण कृषि क्षेत्र रहा है जो 3.4% बढ़ा है। वैसे कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पुरे भारत के अर्थव्यवस्था को इस मंदी से नहीं बचा सकती है।  एसबीआई के अनुमान के अनुसार भारतीय सकल घरेलू उत्पाद 2020-21 में पूरे वर्ष में लगभग 10% कम हो सकता है। अन्य अनुमान कहते हैं कि इस वर्ष भारतीय जीडीपी वृद्धि -6 से -10% के बीच हो सकती है। उम्मीद है कि दूसरी तिमाही और तीसरी तिमाही निस साल की पहली तिमाही की तरह खराब नहीं होगी। चूंकि भारत को कोरोनावायरस के सबसे अधिक कहर देखना अभी बाकी है, इसलिए मुझे नहीं लगता कि चौथी तिमाही (जनवरी 2021-मार्च 2021) में सकारात्मक आर्थिक वृद्धि देखी जाएगी। सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत में मांग बहुत कम हो गयी है।  उदहारण के लिए इस साल लोग अपने बड़े बड़े खरीददारी को अगले साल के लिए टाल रहे है।  साधारण शब्दों में बहुत से लोग कार , मोटर साइकिल , गहने , इलेक्ट्रॉनिक सामान , कपड़े इत्यदि पिछले साल की तुलना में कम खरीद रहे है। लोगों को भविष्य को ले कर अनिश्चितता है और वो पैसे बचा कर रखना छह रहे है। जब तक अर्थव्यवस्था में सामानों को मांग नहीं होगी, अर्थव्यवस्था ठीक से इस मंदी से उबर नहीं पायेगा।

भारतीय सरकार की वित्तीय स्थिति भी अच्छा नहीं है। जीएसटी के राजस्व बंटवारे को लेकर केंद्र और राज्य के बीच तल्खी चल रही है। और सरकार को आने वाली तिमाहियों में किसी प्रकार का आर्थिक  पैकेज देना होगा। दो विकल्प हैं - अधिक ऋण लें या और पैसे छापे। और दोनों दीर्घकालिक समय में अच्छे नहीं हैं। ऐसी आशंकाएं हैं कि जीडीपी अनुपात में ऋण 85 से 90% तक जा सकता है (जो कि विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है) ज्यादा पैसे छापने का मतलब होगा महंगाई और सरकार। चुनावी हार के डर से रास्ता नहीं चुना जा सकता है। मुझे उम्मीद है कि भारत में कम से कम "वी" आकार की आर्थिक वृद्धि  होगी लेकिन अगर सर्दियों में दूसरी कोरोना लहर होती है तो भी "डब्ल्यू" आकार की वृद्धि में  संदेह में होगी। और यह संकट 2021-22 की आर्थिक वृद्धि को भी खींच लेगा। इसलिए मार्च 2022 के अंत में भी यदि हमारी जीडीपी मार्च 2020 के स्तर पर है तो यह भारत के लिए बहुत अच्छा परिणाम होगा।

1 comment:

  1. The skillful mould and part designer positions these aesthetic detriments in hidden areas if possible. The Ceramic Teapot Sets world steel and ceramic injection molding market is broadly affected by several of} factors, together with enhance in demand for steel and ceramic injection molded parts and components in various end-use industries. Increase in world demand for vehicles is expected to be a main driver of the global steel and ceramic injection molding market.

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