Friday, June 19, 2020

कैसे 15 -16 जून के रात को भारत और चीन के सैनिकों के बीच का विवाद खुनी झड़प में बदल गया ?

जहाँ तक मैंने जो विश्वसनीय रिपोर्टें पढ़ी हैं, मुझे लगता है कि लड़ाई की जगह के कारण भारत चीन झड़प बहुत खुनी झड़प बन गयी। और एक बार लड़ाई शुरू हो जाता है तो इसको रोकना मुश्किल होता है और यह झड़प घंटो तक चली।
कुछ ऐसी खबरें आई हैं कि चीनी सेना ने पैंगोंग त्सो झील के फिंगर एरिया में डंडो पर कांटेदार तारों का इस्तेमाल पिछले महीने किया था और कुछ महीनों से और उनका रुख आक्रामक हो गया है। पिछले महीने फिंगर एरिया में दो वीडियो आये थे (एक में भारत के सैनिक चीनी को पिट रहे थे और एक में चीनी सेना भारत के जवान को जमीन पर लिटाये हुए थे) और वहां पर भी बिना बंदूकों से लड़ाई हुआ था। यहां तक ​​कि पिछले महीने भी सिक्किम में झड़प में हाथ से लड़ाई लड़ी गयी थी । भारत और चीन ने पिछले दो तीन दशकों में कई समझौतों (1993, 1996, 2008 इत्यादि) पर हस्ताक्षर किए हैं जो सीमा संघर्ष में आग्नेयास्त्रों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हैं। दोनों सेनाओं ने गालवान घाटी में उस प्रोटोकॉल का पालन किया और गोली नहीं चलाया। आइए हम 15 जून को गालवान घाटी में होने वाले कार्यक्रमों का क्रम देखते हैं।
  • चीन ने एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के बहुत करीब टेंट का निर्माण किया था (एलएसी के साथ तीन जोन हैं - एक भारत द्वारा नियंत्रित, एक चीन द्वारा नियंत्रित और बीच वाला क्षेत्र जहां दोनों सेनाएं गश्त करती हैं)। और उसके बाद दोनों सेनाओं ने आमने सामने खड़ी हो गयी ।
  • भारत और चीनी सैन्य अधिकारियों ने 15 जून को एलएसी से 2-3 KM वापस होने का फैसला किया। शाम को, भारत सेना की एक छोटी टुकड़ी यह देखने के लिए गया कि चीनी वापस ले गए हैं या नहीं। उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि एक चीनी तंबू वहां था। और फिर भारतीय पक्ष ने उस तम्बू को हटाने की मांग की और लड़ाई शुरू हुई।
  • शुरुआत में भारतीय पक्ष बड़ा था और फिर बड़ी चीनी टुकड़ी [लड़ाई में शामिल हुई और बाद में भारत की पीछे वाली टुकड़ी भी आयी।
  • यह लड़ाई एक चोटी पर हुई और वह छोटी कुछ मीटर चौड़ा था और वहां सैकड़ों सैनिक लड़ रहे थे। इसलिए शुरुवात में खड्ड में गिरने के कारण सैनिकों की जान गयी हुईं और जहाँ चीनी खड़े थे वो धक्का मुक्का के कारण ढह गया । चीनी लाठी / दस्ताने (जिसमें कंटीले तार लगे हुए थे ) के साथ तैयार थी । दूसरा भारतीय पेट्रोल भी लाठी और डंडे के साथ लड़ाई में शामिल हो गया। ऐसा लगता है कि भारतीयों ने कंटीले तारों जैसे घातक हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया था।
  • एक बार दोनों पक्ष से एक या दो सैनिकों की मृत्यु हो गई, फिर दोनों पक्ष ने वापस होने के बजाय लड़ने का फैसला किया। चीनी ने पहले कर्नल संतोष बाबू पर हमला किया और इस हमले को देखते हुए भारतीय सैनिकों ने अतिरिक्त जोश के साथ युद्ध किया। अगर शुरू में कुछ सैनिकों की जान नहीं जाती तो इतनी लम्बी लड़ाई नहीं चलती।
  • एक और बात है कि यह झड़प एलएसी के चीनी तरफ हुआ।
यह चित्र ट्विटर से लिया गया है।

अगर ऐसी झड़पें पैंगोंग त्सो झील के किनारे के समतल किनारों पर होती तो शायद कोई हताहत नहीं हुआ होता। चीन की गलती यह थी कि समझौते के बाद उन्होंने टेंट हटाया नहीं। और जब भारतीय सैनिकों ने तंबू तोड़ना शुरू किया, तो एक बड़े चीनी पक्ष ने भारत पर बहुत ही घातक हमला किया। ऐसा लगता है कि भारत नए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) बनाने पर काम कर रहा है। आग्नेयास्त्रों के साथ, एक छोटी टीम एक बड़ी टीम को रोक सकती है लेकिन हथियारों के बिना एक छोटा जत्था एक बड़ी जत्था से नहीं लड़ सकती है।
नोट - यह लेख पहले  Quora में प्रकाशित हुआ है। https://hi.quora.com/भारतीय-और-चीनी-सेना-ने-चार/answers/222572241

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